उत्तरायणी/घूगूतिया त्यार और खिचड़ी सन्क्रान्त
साथियो,
मकर संक्रान्ति का त्यौहार वैसे तो पूरे भारत वर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है
और यही त्यौहार हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम और तरीके
से मनाया जाता है।
इस त्यौहार को हमारे उत्तराखण्ड में "उत्तरायणी" के नाम से मनाया जाता है।
कुमाऊं में यह त्यौहार घुघुतिया के नाम से भी मनाया जाता है तथा
गढ़वाल में इसे खिचड़ी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है।
यह पर्व हमारा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है इस पर्व पर कुमाऊं के क्षेत्रों में
मकर संक्रान्ति को आटे के घुघुत बनाये जाते हैं और अगली सुबह को कौवे को
दिये जाते हैं (यह पितरों को अर्पण माना जाता है) |
बच्चे घुघुत की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं :-
काले कौवा काले , घुघुति माला खाले,
लै कौवा बड़ा, आपू सबुनै के दिये सुनक ठुल ठुल घड़ा,
रखिये सबुने कै निरोग, सुख सम़ृद्धि दिये रोज रोज।
अर्थात,
काले कौवा आकर घुघुति (इस दिन के लिये बनाया गया पकवान) खाले,
ले कौव्वे खाने को बड़ा ले, और सभी को सोने के बड़े बड़े घड़े दे,
सभी लोगों को स्वस्थ्य रख, हर रोज सुख और समृद्धि दे।
क्यों मनाते है हम घुघुतिया त्यौहार ?
घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है:-
कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था |
एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई|
घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है:-
कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था |
एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई|
उत्तरायणी मेला- बागेश्वर
यूँ तो मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी के अवसर पर नदियों के किनारे जहाँ-तहाँ मेले लगते हैं, लेकिन उत्तराखंड तीर्थ बागेश्वर में प्रतिवर्ष आयोजित होने
वाली उतरैणी की रौनक ही कुछ अलग है ।
बागेश्वर में उत्तरायणी के मेले का अत्यधिक पौराणिक, आध्यात्मिक व ऐतिहासिक महत्व है. स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान इसी मेले के दौरान इसी संगम में सन 1921 में कुमाऊं केसरी बदरी दत्त पाण्डे के नेतृत्व में आम जनता ने "कुली बेगार" का उन्मूलन करके ब्रिटिश सरकार के मुंह पर करारा तमाचा मारा था.
इस आन्दोलन से प्रभावित होकर स्वयं गांधी जी बागेश्वर भ्रमण पर आये थे.
यूँ तो मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी के अवसर पर नदियों के किनारे जहाँ-तहाँ मेले लगते हैं, लेकिन उत्तराखंड तीर्थ बागेश्वर में प्रतिवर्ष आयोजित होने
वाली उतरैणी की रौनक ही कुछ अलग है ।
बागेश्वर में उत्तरायणी के मेले का अत्यधिक पौराणिक, आध्यात्मिक व ऐतिहासिक महत्व है. स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान इसी मेले के दौरान इसी संगम में सन 1921 में कुमाऊं केसरी बदरी दत्त पाण्डे के नेतृत्व में आम जनता ने "कुली बेगार" का उन्मूलन करके ब्रिटिश सरकार के मुंह पर करारा तमाचा मारा था.
इस आन्दोलन से प्रभावित होकर स्वयं गांधी जी बागेश्वर भ्रमण पर आये थे.