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Monday, 13 January 2014

Uttarayani Biggest folk festival of uttarakhand { 14 January }


उत्तरायणी/घूगूतिया त्यार और खिचड़ी सन्क्रान्त

  
साथियो,
मकर संक्रान्ति का त्यौहार वैसे तो पूरे भारत वर्ष में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है

 और यही  त्यौहार हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम और तरीके

 से मनाया जाता है।


इस त्यौहार को हमारे उत्तराखण्ड में "उत्तरायणी" के नाम से मनाया जाता है।



कुमाऊं में यह त्यौहार घुघुतिया के नाम से भी मनाया जाता है तथा 


गढ़वाल में इसे खिचड़ी संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है। 


यह पर्व हमारा सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है इस पर्व पर कुमाऊं के क्षेत्रों में 

मकर संक्रान्ति को आटे के  घुघुत बनाये जाते हैं और अगली सुबह को कौवे को

 दिये जाते हैं  (यह पितरों को अर्पण माना जाता है) |


बच्चे घुघुत की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं :-



काले कौवा काले , घुघुति माला खाले,
लै कौवा बड़ा, आपू सबुनै के दिये सुनक ठुल ठुल घड़ा,
रखिये सबुने कै निरोग, सुख सम़ृद्धि दिये रोज रोज।



अर्थात,



काले कौवा आकर घुघुति (इस दिन के लिये बनाया गया पकवान) खाले,
ले कौव्वे खाने को बड़ा ले, और सभी को सोने के बड़े बड़े घड़े दे,
सभी लोगों को स्वस्थ्य रख, हर रोज सुख और समृद्धि दे।

क्यों मनाते है हम घुघुतिया त्यौहार ?

घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है:-

कहा जाता है कि एक राजा का घुघुतिया नाम का मंत्री राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था |

एक कौव्वे ने आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला और राजा ने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे तभी से इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा शुरू हुई| 


उत्तरायणी मेला- बागेश्वर

यूँ तो मकर संक्रान्ति या उत्तरायणी के अवसर पर नदियों के किनारे जहाँ-तहाँ मेले लगते हैं, लेकिन उत्तराखंड तीर्थ बागेश्वर में प्रतिवर्ष आयोजित होने 

वाली उतरैणी की रौनक ही कुछ अलग है ।

बागेश्वर में उत्तरायणी के मेले का अत्यधिक पौराणिक, आध्यात्मिक व ऐतिहासिक महत्व है. स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान इसी मेले के दौरान इसी संगम में सन 1921 में कुमाऊं केसरी बदरी दत्त पाण्डे के नेतृत्व में आम जनता ने "कुली बेगार" का उन्मूलन करके ब्रिटिश सरकार के मुंह पर करारा तमाचा मारा था.

इस आन्दोलन से प्रभावित होकर स्वयं गांधी जी बागेश्वर भ्रमण पर आये थे.

Friday, 19 July 2013

Religious Facts About Uttarakhand

हमारा राज्य उत्तराखंड जिसे दूसरे शब्दों में देव भूमि ने नाम से भी जाना जाता है

वह भूमि जहाँ देवी देवता का निवास स्थान है,उत्तराखंड के पग पग मन्दिर है |

देवी देवताओं ने भी अलग-अलग जगह पर समय-समय पर कई चमत्कार दिखलाये है
जिसकी वजह से उनके मन्दिर भी उन जगहों पर अभी भी विद्यमान है |

इस थ्रेड में हम अपने सदस्यों को देव भूमि उत्तराखंड के धार्मिक स्थलो से जुडे कुछ तथ्य देगे :-







Gp**

Friday, 12 July 2013

Tuesday, 9 July 2013

Panch Kedar of Uttarakhand

उत्तराखंड के पर्वत शृंखलाओं के मध्य, सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश देनेवाले, अडिग विश्वास के प्रतीक केदारनाथ और अन्य चार पीठों सहित, पंच केदार के नाम से जाने जाते हैं। श्रद्धालु तीर्थयात्री, सदियों से इन पावन स्थलों के दर्शन कर, कृतकृत्य और सफल
मनोरथ होते रहे हैं।

जनश्रुति है कि पांडवों ने कुरुक्षेत्र युद्ध से विजयश्री प्राप्त करने के पश्चात अपने ही संबंधियों की हत्या करने की आत्मग्लानि
से पीड़ित होकर, शिव आशीर्वाद की कामना की, किंतु शिवइस हेतु इच्छुक न थे। शिव ने पांडवों से पीछा छुड़ाने हेतु केदारनाथ में शरण ली, जहाँ पांडवों के पहुँचने का आभास होते ही, उन्होंने बैल रूप में प्राण त्याग दिए। उस स्थान से पीठ के अतिरिक्त शेष भाग लुप्त हो गया। अन्य चार स्थलों पर शेष भाग दिखाई दिए, जो कि शिव के उन रूपों के आराधना स्थल बने।


Monday, 8 July 2013

Nanda Raj Jat 2013 - विश्व की सबसे लम्बी, दुर्गम ओर कठिन धर्मयात्रा

इस बात मे कोई शक नही उत्तराखंड की धरती देव मुनियों  की धरती है,
यह वही धरती है जहाँ पर गंगा को धरती पर पहली बार उतारा गया,
यह वही धरती है, जहाँ शिव ने पार्वती से शादी की |

नंद राजजाट के बारे में संक्षिप्त जानकारी :-


नंदा देवी उत्तराखंड के घर घर पूजी जाती है |

वैसे तो हर साल नन्दाजात का आयोजन की प्रथा है परन्तु बारहवें वर्ष पर
 भव्य और मनोरंजक राजजात किया जाता है।

राजजात या नन्दाजात का अर्थ है राज राजेश्वरी  नन्दादेवी की यात्रा।

उत्तराखंड में देवी देवताओं की जात बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। जात का अर्थ होता है देवयात्रा।

राजजात या नन्दाजात देवी नन्दा की अपने मैत (मायके) से एक सजीं संवरी दुल्हन
के रुप में ससुराल जाने की यात्रा है। ससुराल को स्थानीय भाषा में सौरास
कहते हैं। इस अवसर पर नन्दादेवी को सजाकर डोली में बिठाकर एवं वस्र,
आभूषण, खाद्यान्न, कलेवा, दूज, दहेज आदि उपहार देकर पारम्परिक
की विदाई की तरह विदा किया जाता है।

इस यात्रा में लगभग 280 किलोमीटर की दूरी, नौटी से होमकुण्ड तक,
पैदल करनी पड़ती है। इस दौरान घने जंगलों पथरीले मार्गों, दुर्गम चोटियों
और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है।

यात्रा की कठिनता और दुरुहता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है
 कि बाणगांव से आगे रिणकीधार से यात्रियों को नंगे पांव चलकर लगभग
17000 फीट की ऊँचाई पार करनी पड़ती है।
रिणकीधार से आगे यात्रा में काफी प्रतिबन्ध भी है जैसे स्रियाँ, बच्चे,
चमड़े की बनी वस्तुएं, गाजे-बाजे, इत्यादि निसिद्ध है।

सम्भवत :- यह विश्व की सबसे लम्बी, दुर्गम ओर कठिन धर्मयात्रा है।
इसे केवल समर्पित एवं निष्ठावान व्यक्ति ही कर सकते हैं।
हजारों श्रद्धालु आज भी इस यात्रा को पूरा करते हैं |

 मां नंदा देवी _/\_


Nanda Raj Jat 2013
29 August to 16 september 2013 गढ़वाल का महाकुंभ कहे जाने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा का विधिवत कार्यक्रम घोषित कर दिया गया। वसंत पंचमी के शुभ अवसर पर ब्राह्मणों ने पंचाग गणना के बाद तय किया कि इस साल यात्रा 29 अगस्त से 16 सितंबर तक चलेगी।
NANDA DEVI RAJJAT 2013 PROGRAM and Route Map


DAY           DATE JOURNEY ALTITUDE(METERS ABOVE SEA LEVEL) DISTANCE IN KM
1. 29-08-2013 Nauti to Iravadhani 1240 10
2. 30-08-2013 Iravadhani to Nauti 1650 10
3. 31-08-2013 Nauti to Kansuwa 1530 10
4. 01-09-2013 Kansuwa to Sem 1530 10
5. 02-09-2013 Sem to Koti 1630 10
6. 03-09-2013 Koti to Bhagoti 1500 12
7. 04-09-2013 Bhagoti to Kulsari 1050 12
8. 05-09-2013 Kulsari to Chepdyun 1165 10
9. 06-09-2013 Chepdyun to Nandkesari 1200 05
10. 07-09-2013 Nandkesari to Faldiagaon 1480 10
11. 08-09-2013 Faldiagaon to Mundoli 1750 10
12. 09-09-2013 Mundoli to Vaan 2450 15
13. 10-09-2013 Vaan to Gairoli Patal 3032 10
14. 11-09-2013 Gairoli Patal to Pathar Nachauniyan 3650 12
15. 12-09-2013 Pathar Nachauniyan to Shila Samudra 4210 15
16. 13-09-2013 Shila Samudra to Homkund (4450) for Nandanavmi and return to Chandniaghat at 10:45AM after pooja. 4010 16
17. 14-09-2013 Chandniaghat to Sutol 2192 18
18. 15-09-2013 Sutol to Ghat 1331 25
19. 16-09-2013 Ghat to Nauti(By Bus) 1650 60
Total Days :- 19                                                                                                                   Total Distance :- 280KM

Monday, 1 July 2013

Uttarakhand Culture - उत्तराखण्ड की संस्कृति

उत्तराखंड भारत का मुकुट है और यह देव भूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है |
यहाँ की संस्कृति भी Rich है |
 यहाँ पर उत्तराखंड के विभिन्न भागो की संस्कृति के बारे मे जानकारी देंगे |
 उत्तराखण्ड की संस्कृति इस थ्रेड के अर्न्तगत आप उत्तराखण्ड की संस्कृति, रीति रिवाज,त्यौहार, उत्तराखंड के विभिन्न स्थानीय मेलों और अन्य परम्पराओं से संबंधित जानकारी पा सकते है।



Saturday, 8 June 2013

RELIGIOUS PLACE OF DEV BHOOMI UTTARAKHAND

हमारा राज्य उत्तराखंड जिसे दूसरे शब्दों में देव भूमि ने नाम से भी जाना जाता है

वह भूमि जहाँ देवी देवता का निवास स्थान है,उत्तराखंड के पग पग मन्दिर है |

यह वही भूमि है वहां पर शिव शंकर भोले नाथ ने महा सती पार्वती माता से शादी की |

देवी देवताओं ने भी अलग -२ जगह पर समय -२ पर कई चमत्कार दिखलाये है जिसकी वजह से उनके मन्दिर भी उन जगहों पर अभी भी विद्यमान है |

इस थ्रेड में हम अपने सदस्यों को फोटो द्वारा देव भूमि उत्तराखंड के विभन्न धार्मिक एव इतिहासिक स्थानों के दर्शन करेगे :-

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