उत्तराखंड
के पर्वत शृंखलाओं के मध्य, सनातन हिन्दू संस्कृति का शाश्वत संदेश
देनेवाले, अडिग विश्वास के प्रतीक केदारनाथ और अन्य चार पीठों सहित, पंच
केदार के नाम से जाने जाते हैं। श्रद्धालु तीर्थयात्री, सदियों से इन पावन
स्थलों के दर्शन कर, कृतकृत्य और सफल
मनोरथ होते रहे हैं।
जनश्रुति है कि पांडवों ने कुरुक्षेत्र युद्ध से विजयश्री प्राप्त करने के पश्चात अपने ही संबंधियों की हत्या करने की आत्मग्लानि से पीड़ित होकर, शिव आशीर्वाद की कामना की, किंतु शिवइस हेतु इच्छुक न थे। शिव ने पांडवों से पीछा छुड़ाने हेतु केदारनाथ में शरण ली, जहाँ पांडवों के पहुँचने का आभास होते ही, उन्होंने बैल रूप में प्राण त्याग दिए। उस स्थान से पीठ के अतिरिक्त शेष भाग लुप्त हो गया। अन्य चार स्थलों पर शेष भाग दिखाई दिए, जो कि शिव के उन रूपों के आराधना स्थल बने।
मनोरथ होते रहे हैं।
जनश्रुति है कि पांडवों ने कुरुक्षेत्र युद्ध से विजयश्री प्राप्त करने के पश्चात अपने ही संबंधियों की हत्या करने की आत्मग्लानि से पीड़ित होकर, शिव आशीर्वाद की कामना की, किंतु शिवइस हेतु इच्छुक न थे। शिव ने पांडवों से पीछा छुड़ाने हेतु केदारनाथ में शरण ली, जहाँ पांडवों के पहुँचने का आभास होते ही, उन्होंने बैल रूप में प्राण त्याग दिए। उस स्थान से पीठ के अतिरिक्त शेष भाग लुप्त हो गया। अन्य चार स्थलों पर शेष भाग दिखाई दिए, जो कि शिव के उन रूपों के आराधना स्थल बने।
- मुख - रुद्रनाथ,
- जटा-सिर - कल्पेश्वर,
- पेट का भाग - मध्यमेश्वर और
- हाथ - तुंगनाथ में पूजे जाते हैं।
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